Text selection Lock by Hindi Blog Tips

शनिवार, 15 अगस्त 2009

लियो तोल्स्तोय का अंतरंग संसार

साहित्य शिल्पी में संवाद प्रकाशन मुम्बई/मेरठ से मेरे द्वारा संचयित और अनूदित शीघ्र प्रकाश्य पुस्तक ‍‍लियो तोल्स्तोय का अंतरंग संसार’ से कुछ संस्मरण वेब पत्रिका ’साहित्य शिल्पी’ में धारावाहिक प्रकाशित हो रहे थे. निम्न संस्मरण १३.०८.२००९ को प्रकाशित हुआ था, लेकिन रचना के शीर्षक के साथ लेखक के नाम के रूप में आई.आई.मेक्नीकोव का नाम किस प्रकार जुड़ गया समझ नहीं आया. हालांकि मूल लेखक वी.ए.गिल्यारोव्स्की का नाम भी बाद में लिखा गया है. मैंने साहित्य शिल्पी के सम्पादक को उसे सम्पादित करने का अनुरोध किया, लेकिन उन्होंने वैसा नहीं किया. अपने पाठकों के सही पाठ के लिए मैं ’रचना यात्रा’ में उस संस्मरण को पुनः प्रस्तुत कर रहा हूं.
’साहित्य शिल्पी’ द्वारा त्रुटि संशोधित न करने को मेरे प्रकाशक ने पाठकों को दृष्टिगत रखते हुए गंभीरता से लिया है और मुझसे अनुरोध किया है कि मैं वहां शेष रह रहे संस्मरणों को प्रकाशित न करने के लिए ’साहित्य शिल्पी’ के सम्पादक से कहूं. ’रचना यात्रा’ के माध्यम से कहने के अतिरिक्त अलग से भी मैं उन्हें पत्र लिखूंगा कि आगामी अंक से वे शेष संस्मरणॊं को स्थगित कर देंगे।
****
संस्मरण
स्तारोग्लादोव्स्काया का व्यक्ति
वी.ए. गिल्यारोव्स्की
(व्लादीमिर अलेक्जेयेविच गिल्यारोव्स्की (१८५५-१९३५) रूसी लेखक)

अनुवाद : रूपसिंह चन्देल

यह मेरा सौभाग्य था कि मुझे उस व्यक्ति से मिलने का अवसर मिला जिसे लेव निकोलायेविच की याद थी . वह उसके कज्जाकी गांव स्तारोग्लादोव्स्काया में कभी रहे थे.

उसने मुझे किस्से सुनाये जिन्हें मैं ईमानदारी से यहां दोहरा रहा हूं. केवल वही लेव निकोलायेविच के उस समय के जीवन के विषय में कुछ भी बताने की सामर्थ्य रखता था.

सेर्गेई निकोलायेविच तोल्स्तोय को लिखे अपने २३ नवम्बर, १८५३ के पत्र में लेव निकोलायेविच ने दूसरी अन्य बातों के अतिरिक्त लिखा था कि उनका भाई निकोलई गांव छोड़ते समय शिकारी कुत्तों का दल अपने साथ ले गया था.

येपिश्का और मैं प्रायः उन्हें इसके लिए ’हॉग’ (hawg) कहा करते थे. वही येपिश्का , लेव निकोलायेविच का अंतरंग मित्र, पुराने स्कूल का तेज-तर्रार कज्जाक, तोल्स्तोय ने अपने ’कज्जाक’ उपन्यास में येरोश्का के रूप में जिसका सजीव चित्रण किया था. उस बूढ़े व्यक्ति को, लेव निकोलयेविच के उन दिनों की अच्छी याद थी, जब वे दोनों युवा थे. वह यपिश्का को भी जानता था और उसने उसके विषय में बहुत कुछ बताया.

१९१० में येसेन्तुकी में मैंने उस वृद्ध के साथ बातचीत के सार विवरण लिखे जिन्हें यहां पुनः प्रस्तुत कर रहा हूं .मैंने वह सब तब लिखा था जब वह मेरे मस्तिष्क में बिल्कुल ताजा था.

ऎसी मुलाकातें विरल होती हैं. सेण्ट जार्ज क्रॉस और काकेशियन मिलिटरी क्रॉस पहनने वाले उस अफसर ने मुझ में गहरी उत्सुकता पैदा कर दी थी. हमने बातचीत की. वह कज्जाक गांव स्तारोग्लादोव्स्काया का रहने वाला किरिल ग्रिगोरेविच नामक ग्रेबेन कज्जाक था. मैं जानता था कि यही वह वास्तविक गांव था जिसे तोल्स्तोय ने अपने कज्जाक उपन्यास में नोवोम्लिन्स्काया नाम से चित्रित किया था.

मैं यह भी जानता था कि कुछ वर्ष पहले, लेव निकोलायेविच से मिलने एक ग्रेबेन कज्जाक अफसर आया था. लेकिन वह एक नौजवान था, और मुझसे बातचीत करने वाला लेव निकोलायेविच की ही आयु का ----- यही, कोई सत्तर से ऊपर था. अभी भी वह स्वस्थ और ऊर्ज्वसी था. वह अपनी आयु से पर्याप्त कम दिखाई देता था.

उसे देखकर मैं बहुत प्रसन्न हुआ. उसके बाल वैसे ही सफेद थे जैसे पर्वत शिखर पर बर्फ. वह सरकण्डा जैसा दुबला और मजबूत था. तोल्स्तोय के विषय में जो कुछ उसे याद था उसने मुझे बताना प्रारंभ किया :

"निश्चित ही मुझे उनकी याद है. मुझे अच्छी तरह याद है. १८४५ में हमारे गांव में पुराने उक्रैनी आस्तिक लोग आये और गांव के एक हिस्से में नयी बस्ती बनानी प्रारंभ की. हां, जब तोल्स्तोय आये, तब उन्होंने अपना सामान वहीं एक मकान में रखा. फिर उन्होंने गांव के पुरानी बस्ती में शिफ्ट कर लिया, जहां वह रहते रहे. २०वीं आर्टिलरी ब्रिगेड वहां नियुक्त थी, और उनका भाई उसमें अफसर था. लेकिन वह अपने भाई के साथ नहीं रहते थे. वह अलग कज्जाक सेकिन के घर में रहते थे. हमारे गांव में बहुत से सिन्युखायेव्स और सेकिन थे. वे सभी एक -दूसरे के रिशेदार थे. तोल्स्तोय --- हम सभी उन्हें तोल्सोव कहते थे --- एक धनी सेकिन के यहां रहते थे, जिसके पड़ोस में सेकिन का भाई और तोल्स्तोय का मित्र, अंकल येपिश्का रहता था, जो एक शिकारी और घुड़सवार था और जिसकी बराबरी करने वाला आज तक कोई नहीं हुआ. लेकिन उस जमाने में उसके कुछ प्रतिद्वन्द्वी भी थे. येपिश्का एक शानदार कज्जाक था. वह अपने कुत्तों, बाजॊं और हर प्रकार के प्रशिक्षित जानवरों के साथ घर में अकेले रहता था और उन्हें घर जैसा वातावरण देता था. सभी उसे प्यार और आदर देते थे. न केवल कज्जाक, बल्कि चेचेन और नोगाइस भी. वह प्रायः उनके ऑल्स (auls) (एक स्थानीय बस्ती) में जाते थे, जहां एक सम्माननीय अतिथि के रूप उनका स्वागत किया जाता था. वह सभी से एक ही बात कहते, "हम सभी जीवित हैं, लेकिन मरना भी है. लोग जानवार नहीं हैं कि एक-दूसरे के गले तक दौड़ लें." इसी प्रकार वह रहते थे. वह या तो शिकार करने जाते या बलालइका (गिटार की तरह का एक तिकोना रूसी तीन तारा वाद्य यंत्र) बजाते. छुट्टी वाले दिनों में वह लाल सिल्क का बेशमेट (राजकुमारी गिरि द्वारा भेंट किया गया), मुलायम चमड़े के स्लिपर और चांदी के बेलबूटेदार चुस्त-दुरस्त पतलून पहनते. उनकी लंबी फर कैप भेड़िये अथवा लोमड़ी की खाल की बनी होती थी और कोई भी उससे अपनी टोपी की तुलना नहीं कर सकता था. ऎसे समय वह सदैव अपने साथ बलालइका लेकर चलते थे, कभी बन्दूक लेकर नहीं. वह एक टावर की भांति लम्बे और बैल की भांति ताकतवर थे. इसी रूप में मुझे उनकी याद है और वह उस समय लगभग सत्तर के थे. आधी बाल्टी ’चिखीर’ (Chikhir) पीने के बाद वह गाने और नाचने लगते थे. हे भगवान ! कितना अच्छा नाचते थे वह. "अंकल येपिश्का, थोड़ा और नाचिये", उपस्थित लोग प्रार्थना करते. "अच्छा, अगर तुम मुझे पहले एक जग चिखीर दो." वे लोग शराब लाते, वह उसे ढालते और पुनः गाने, नृत्य करने और बलालइका बजाने लगते थे. लेकिन यह केवल छुट्टी वाले दिनों में ही होता था. काम वाले दिनों में येपिश्का किसी भी व्यक्ति से एक शब्द भी नहीं कहते थे. वह अपना पुराना बेशमेट (Beshmet) , बकरी की खाल की बिरजिस, भैंस की खाल के बूट, भेड़िये की खाल का टोप पहनते और अपने कंधे पर एक खाल डाल लेते थे. उनके हाथ की बंदूक की बट स्वर्णजटित थी. उस गन से उनका निशाना कभी नहीं चूका . उन दिनों पाउडर और सीसा बहुत महंगे थे. लोग राइफल प्रतियोगिता में भाग नहीं लेते थे."

उस समय एक लंबा, चौड़े कंधोवाला कुबान कज्जाक वहां से गुजरा था.

"येपिश्का बहुत ही लंबा और इससे कहीं अधिक चौड़ा था." उस कुबान कज्जाक की ओर संकेत करते हुए मेरे संलापक ने कहा. इससे मैंने अनुमान लगाया कि लेव निकोलायेविच का मित्र कितना विशालकाय था.

"उन्होंने कभी कुछ नहीं किया सिवाय शिकार के. उनके पास सेण्ट जार्ज क्रॉस था, लेकिन उन्होंने कभी भी उसे नहीं पहना. केवल अपने संतोष के लिए वह केवल अपने पुराने बेशमेट में चिक्कर फीता लगाते थे और वह भी इसप्रकार कि दिखायी न दे. वह अपने महाकार्यों के विषय में चर्चा करना पसंद नहीं करते थे, लेकिन उस बूढ़े आदमी ने उनके विषय में आश्चर्यजनक कहानी सुनाई कि वह कितने बड़े ’जिगीत’ थे ( काकेशिया और मध्य एशिया में प्रचिलित यह शब्द घुड़सवारी , तलवार और बंदूक चल्लने में निपुण , नर्भीक और साहसी व्यक्ति के लिए प्रयुक्त होता था ) . बाद में उन्होंने सेना में और अधिक सेवा करने से इंकार कर दिया था. कोई नहीं जानता, क्यों !"

’वह अच्छे स्वभाव के, और आराम पसंद व्यक्ति थे. अपने अप्रिय शब्दों अथवा काम से उन्होंने कभी किसी को आहत नहीं किया. उन्होंने बहुत खराब किया तो किसी को हॉग (hawg) कहकर पुकारा. वह बहुत स्नेही थे और अंतरंतता में सभी के लिए ’तू’ प्रयोग करते थे. जब वह कहानियां सुनाते अथवा गाते तब पूरा गांव एकत्र हो जाया करता था. उनकी आवाज ऊंची और खनकदार थी.

वह गांव की किसी सभा में उपस्थित नहीं होते थे और न ही गांव के किसी कार्य में भाग लेते थे. "मैं अपने लिए जी रहा हूं. मैं एकाकी भेड़िया हूं." वह कहते. वह बस बंदूक, शिकार, जाल तैयार करना, पीना और आनंद मनाना ही जानते थे. तोल्स्तोय केवल अपवाद थे. वह तोल्स्तोय को प्यार करते थे. उन्हें ’कुनाक’ (Kunak) , अथवा सगे भाई की भांति देखते थे. केवल तोल्स्तोय ही अकेले थे जिन्हें वह शिकार के लिए अपने साथ ले जाते थे. अपने घर के बाहर पत्थर पर आग जलाकर बर्तन में दलिया पकाते समय तोल्स्तोय उनकी बगल में बैठे होते थे. शिकार से लौटते समय दोनों शिकार लटकाये होते और उनके बैग भी भरे होते थे. उनकी बंदूक और शैतली (Shataly - एक प्रकार की बंदूक) उनके कंधों से लटकती होती थी. वह धीमे चलते, क्योंकि शायद दस पूड का वजन वह लादे होते थे. जैसा कि मुझे याद है , अंकल येपिश्का कभी घोड़े पर नहीं, पैदल ही शिकार के लिए जाते थे. वह कुमिक और नोगाई भाषाएं बोल लेते थे और राजकुमारी गिरि के अतिथि होते थे. सभी उन्हें प्यार करते . यहां तक कि लड़कियां उनकी उपस्थिति में अपने चेहरे बुर्कों में नहीं छुपाती थीं. पर्वतवासी बा़ज़ों का शिकार करते, जबकि अंकल येपिश्का बाज़ों को प्रशिक्षित करते और अच्छे मूल्य में उन्हें बेचते थे.

"किरिक ग्रिगोर्येविच, तुम्हें तोल्स्तोय की स्मृति है ?" मैंने पूछा.

"इतनी कि मानो वह इस समय मेरे सामने खड़े हैं."

"तुम्हें उनकी कहानी ’कज्जाक’ याद है ?"

"अंतरतम से जानता हूं. हमने उसे बार-बार पढ़ा है." ’यह हमारे तोल्स्तोय द्वारा लिखा गयी है’ हमलोग प्रायः यह कहते हैं.

"उन्होंने किससे लुकाश्का का चरित्र लिया था ?"

"लुकाश्का हमारा मोची था. मैं भूल गया हूं कि उसका वास्तविक नाम क्या था. लेकिन लेव, उन दिनों हमारे सभी लोग लुकाश्का को पसंद करते थे---- ."

"मार्यान्का के विषय में बताइए. वह कौन थी ?"

"उसकी मृत्यु को बहुत कम समय हुआ है."

फिर उसने स्मृतियों को पुनः कुरेदना प्रारंभ किया.

"मुझे याद है कि तोल्स्तोय के पास बहुत सुन्दर घोड़े थे---- एक कुम्मैत और एक चितकबरा. वह अपने घोड़ों को बाहर घुमाना पसंद करते थे. उन्हें उकसाते फिर उडलकर काठी पर चढ़ जाते और गांव के चक्कर लगाते. वह एक कुशल घुड़सवार थे. उनकी ओर हमारे ध्यानाकर्षण का यह एक मात्र कारण था कि वह एक ’जिगीत’ और येपिश्का के मित्र थे. हमने कभी कल्पना नहीं की थी कि वह इतनी ख्याति अर्जित करेंगे. वह मेरे पड़ोस में रहते थे. पहले वह न्यू स्ट्रीट में ग्लूशोक के यहां रहते थे, फिर वह येपिश्का के भाई सेकिन के यहां रहने आ गये थे. उसका घर हमारे घर के बगल में था. बाद में, जब तोल्स्तोय अफसर बन गये, मैंने सुना कि आक्रमण के दौरान उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया था. अपने आदमियों को वह पुराने युर्ट (Yurta ) से आगे ले गये थे. हमने उनके कैसे कैसे कारनामें सुने थे. लेकिन यदि वह जिगीत न होते, हममे से कौन उनकी ओर ध्यान देता ?"

"तुम्हारे गांव में कोई और भी है जिसे तोल्स्तोय की याद हो ?"

"मुझे नहीं लगता. शायद यर्गुशेव ---- अस्सी से ऊपर बूढ़ा व्यक्ति--."

"यर्गुशेव---- नाम परिचित है. लेव निकोलायेविच ने कज्जाक में इसकी चर्चा की है ."

"हां, धुत्त कज्जाक जमीन पर पड़ा है. उसे सीधे जीवन से उठाया गया है. लेव निकोलायेविच ने उसका नाम तक नहीं बदला. यर्गुशेव भयानक पियक्कड़ों में से एक था. वह हमारा रिश्तेदार था."


"किरिल ग्रिगोर्येविच क्या बाद में आपने अनुभव किया कि कितना प्रसिद्ध व्यक्ति आपके गांव में रहता था ?"

"ओह, हां. बहुत पहले हमें ज्ञात हो गया था. जब उनकी पहली पुस्तक प्रकाशित हुई थी. हम सबने उसे पढ़ा था और बच्चों को उनके विषय में स्कूल में बताया जाता था. हमारा भतीजा द्मित्री सेकिन, मिखाइल सेकिन का बेटा , जो अंकल येपिश्का का भी भतीजा था, तोल्स्तोय से मिलने के लिए यास्नाया पोल्याना गया था. लेव निकोलायेविच ने अपने हस्ताक्षर करके अपना एक चित्र उसे हमारे गांव के लिए दिया था. लेकिन चित्र रास्ते में ही चोरी हो गया था.

"ऎसा कैसे हुआ ?"

"इस विषय में द्मित्री स्वयं आपको बता सकता है. वह इन दिनों किज्ल्यार ग्रेबेन रेजीमेण्ट में कार्यरत है. यदि आप चाहें तो उससे कल प्यातिगोर्स्क के निकट मिल सकते हैं. उसका कैम्प युत्सा के निकट है. उसे मेरी शुभकामनाएं देना."

*****

सुबह जल्दी ही मैं प्यातीगोर्स्क से लगभग छः वर्स्ट की दूरी पर युत्सा पर्वत के निकट कैम्प में पहुंचा और येकातेरिनोदर रेजीमेण्ट को ड्रिल करते हुए पाया. असह्य गर्मी थी और चारों ओर उड़ती धूल की मोटी पर्त के कारण कुछ भी दिखायी नहीं दे रहा था. ड्रिल दोपहर को खत्म हुई और जब घोड़ों से जीन उतार दी गई और डिनर तैयार हो गया, मैं द्मित्री को देखने गया.

रेजीमेण्टें अगल-बगल डेरा डाले हुए थीं. ग्रेबेन रेजीमेण्ट के लोग पहले ही कैम्प वापस लौट चुके थे . सेकिन मुझे अपने टेण्ट में मिला . मेरा सामना लंबी मूंछोवाले, नीला पतलून, सफेद कमीज और बड़ा काला फर कैप पहने एक खूबसूरत कज्जाक से हुआ . तब तक उसने स्नान नहीं किया था और सिर से पांव तक धूल से सना हुआ था.

"मैं सेकिन हूं. क्या आप मुझे पूछ रहे हैं ?" दबंग आवाज में उसने पूछा.

"द्मित्री मिखाइलोविच ?"

"हां . मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं ?"

"मैं किरिल ग्रिगोर्येविच के माध्यम से आया हूं." मैंने अपना परिचय दिया . ऎसा प्रतीत हुआ कि एक लेखक के रूप में सेकिन ने मेरे बारे में सुना हुआ था. उसने मुझे टेण्ट के अंदर आमंत्रित किया और मैंने उसे सिन्युखायेव के साथ हुई अपनी बातचीत और अपने आने का उद्देश्य बताया.

"मुझे जो कुछ भी जानकारी है आपको प्रसन्नतापूर्वक बताऊंगा. " वह बोला.

"लेव निकोलायेविच के साथ मेरी मुलाकात बहुत महत्वपूर्ण थी, जिसे मैं कभी नहीं भूल सकता. मेरे जीवन का वह एक महत्तम क्षण था."

उसकी अनुमति से मैंने अपनी नोटबुक निकाली, और उसकी बात लिखने लगा.

"फरवरी २१, १९०८ को मैं यास्नाया पोल्याना पहुंचा था. मैं बर्फीले लंबे मार्ग पर जा रहा था. दो किसान सामने दिखे थे. मैंने ध्यान से देखा. एक लेव निकोलायेविच थे. मैं स्लेज से कूदा और उनके पास दौड़ गया . वह बर्फ पर स्लेज के लिए रास्ता बनाने आये थे. उनके पास जाकर मैंने उन्हें प्रणाम किया.

"एक असाधारण बात है लेव निकोलायेविच." मैं बोला, "अपने अंकल की ओर से उनका भतीजा पचास वर्ष बाद आपसे मिलने आया है."

"लेव निकोलायेविच समझ नहीं पाये, केवल गंभीरतापूर्वक मेरी ओर देखते रहे. मैंने पुनः अभिवादन किया."

"आह, पाल्किन ?" लेव निकोलायेविच ने पूछा.

"नहीं, पाल्किन नहीं, बल्कि अंकल येरोश्का का भतीजा."

"लेव निकोलायेविच ने भौंहे सिकोड़ीं. वह उसी प्रकार खड़े रहे और टकटकी लगाकर जमीन पर देखते रहे.

"कौन येरोश्का ?" वह बोले.

"वही येरोश्का -- पचास वर्ष पहले आप जिसके अतिथि थे, जिसके साथ आप शिकार के लिए जाते थे और जिसका चित्रण आपने अपनी कहानी में किया है. "

"येपिश्का ? नहीं !" और लेव निकोलायेविच का चेहरा खिल उठा था.

"मैं रिश्ता नहीं समझ सका था."

"उनके एक भाई था, मिखाइल पेत्रोविच . मैं उनका बेटा, द्मित्री मिखाइलोविच सेकिन हूं."

"सेकिन, सेकिन !"

"उन्होंने मेरी ओर अपना हाथ बढ़ाया और गर्मजोशी से मेरा हाथ दबाया."

"और तुम क्या हो ---- कैप्टेन ?"

मेरे मिलिटरी कोट की ओर वह निर्निमेष देख रहे थे.

"नहीं, लेफ्टीनेण्ट कर्नल."

"अच्छा, आओ चलें."

"वह अपने घर की ओर मुड़े, फिर अचानक बोले, ’तुम घर तक स्लेज पर जाओ और इल्या वसील्येविच से कहना कि मैं दस मिनट में वापस आऊंगा."

"मैंने उनका संदेश इल्या विसील्येविच को दिया और वह मुझे नीचे की मंजिल में एक कमरे में ले गया. दस मिनट में उसने मुझे ऊपर मंजिल में बुलाया. वहां मुझे गोर्बुनोव-पोसारोव, गुसेव और नकल नवीस मिले. लेव निकोलायेविच मुस्कराते हुए अंदर आए और मेरा परिचय दिया :

"मेरे अंकल येरोश्का के भतीजे से मिलें."

"उन्होंने मुझसे गांव के विषय में पूछना प्रारंभ किया और अपने दिनों की यादों में खो गये.

"क्या अभी भी कुछ छतों पर सरकण्डों के छप्पर हैं ?"

"हां."

"और कोई मेरा समकालीन अभी भी जीवित है ?"

"इवान वर्योलोयेविच यर्गुशेव."

"और चिखीर---- तुम अभी भी उसे पीते हो ? चिखीर --- एक सुन्दर पेय ! तुम अभी भी शेमाइका मछली का शिकार करते हो ?"

"नदी में अब अधिक नहीं बचीं, और जो कुछ हैं वे बहुत छोटी हो गयीं हैं."

"यह दुखद है.मुझे सब कुछ बहुत अच्छी प्रकार याद है. स्तारोग्लादोव्स्काया, और पुराना युर्ट. पर्वत कितने सुन्दर हैं! तेरेक और घास का मैदान. वास्तविक जीवन वहीं है. और मिखाइल अलेक्जेयेविच का भाई लुकाश्का ? ओह, हां, मुझे सब कुछ याद है. जिस घर में मैं रहता था उसका क्या हाल है ? और बेबेन्कोव का घर, जहां मेरा भाई निकोलई रहता था ? और येपिश्का की झोपड़ी ?"

"सभी का पुनर्निर्माण हुआ है."

"लेव निकोलायेविच उठ खड़े हुए."

"गुसेव, " वह बोले, "वह भी गांव के विषय में सुनने का इच्छुक है."

"लेव निकोलायेविच कमरे से बाहर चले गये, लेकिन पांच मिनट में वह अच्छी मनःस्थिति में वापस लौट आये, बैठ गये और पुराने समय के विषय में पूछना जारी रखा."

"मेरी स्मृति जवाब दे रही है, लेकिन मुझे सब कुछ पूरी तरह याद है."

"वह पुनः उठ खड़े हुए और बाहर चले गये और कुछ मिनट बाद मुझे अपनी स्टडी में बुलाया. मैंने कहा कि मुझे जाना है."

"ओह, नहीं, बैठ जाओ. इतनी जल्दी क्यों ? मैंने अभी तक तुमसे वास्तविक बात नहीं की."

"लेकिन, महामहिम-----." मैंने कहना शुरू ही किया था कि लेव निकोलायेविच फट पड़े---"

"कृपया, कोई औपचारिकता नहीं..."

"किस प्रकार आपको संबोधित करना होगा. आपको लेव निकोलायेविच कहना भी धृष्टता होगी."

"अगर तुम ग्रेबेन में होते तो क्या पुकारते?"

"हां, जैसा कि आप जानते हैं, अपने से बड़ों को हम अंकल पुकारते हैं. उदाहरण के लिए अंकल येपिश्का."

"अतः तुम अब मुझे अंकल लेव पुकारो. यह बहुत-बहुत सम्मानजनक है." वह हंसे.

"मैंने लेव निकोलायेविच से स्तारोग्लादोव्स्काया स्कूल में लटकाने के लिए उनकी एक तस्वीर मांगी."

"उन्हें एक तस्वीर मिली और उन्होंने उस पर लिखा, ’स्तारोग्लादोव्स्काया के मेरे मित्रों के लिए’ - लेव तोल्स्तोय की ओर से."

"मैं प्रसन्न और उल्लसित वहां से विदा हुआ, लेकिन जल्दी ही दुर्भाग्य से मेरी अंतरात्मा उदासी में डूब गयी. रास्ते में मेरा बैग चोरी हो गया, और वह तस्वीर उसी बैग में थी.

*****

काकेशस में मैंने एक और वृद्ध व्यक्ति को खोज निकाला . वह एक जनरल था, जो उसी बैटरी में कार्यरत था, जिसमें लेव निकोलायेविच थे. लेकिन उससे मैं अधिक कुछ भी हासिल नहीं कर सका. वह बोला, "हुम, निश्चय ही----- हम दोनों को एक ही बैटरी में काम करने का सौभाग्य मिला था. वह एक अच्छे अधिकारी थे."

********

कोई टिप्पणी नहीं: