tag:blogger.com,1999:blog-2880097249222214869.post5220277100148804890..comments2023-10-15T00:40:36.801-07:00Comments on रचना यात्रा: यादों की लकीरेंRoop Singh Chandelhttp://www.blogger.com/profile/07746336325719389687noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-2880097249222214869.post-12349180285752001962010-03-07T01:27:25.423-08:002010-03-07T01:27:25.423-08:00bhai chandel tumharaa sansmaran padaa aaj hame soc...bhai chandel tumharaa sansmaran padaa aaj hame sochne ko majboor honaa padtaa hei ki eise charitra kahaan chale gae hein jinki chhanv me sakoon miltaa thaa aur veise hii guru jan bhee jo nihswarth apne shishyon ke bhavishya ko sawanrte rehte the aur samaaj ke liye prerna srotr bante the eise logon ko yadon me hi sahii milvane ke liye aabhar vyakt kartaa hoonashok andreyhttps://www.blogger.com/profile/03418874958756221645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2880097249222214869.post-15534813947583633942010-03-05T06:17:19.800-08:002010-03-05T06:17:19.800-08:00रूप जी आप का संस्मरण मुझे अपने साथ बहा ले जाता है....रूप जी आप का संस्मरण मुझे अपने साथ बहा ले जाता है...कस्तूरबा जैसे एक चरित्र के स्नेह से ही मैं यहाँ तक पहुँची हूँ ..आप के संस्मरण पढ़ कर मैं भी एक संस्मरण लिख लेती हूँ पर यादों में ही..कागज़ पर उतार नहीं पाती ..लगता है अभी सही समय नहीं ..और अपने को मना लेती हूँ ..सही समय की प्रतीक्षा करो ..शायद यह पलायन है ..या उन यादों को कुरेदना नहीं चाहती जो सुखद नहीं.. आप लिखते रहें शायद मुझे भी एक दिन प्रेरणा मिल जाए..Dr. Sudha Om Dhingrahttps://www.blogger.com/profile/10916293722568766521noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2880097249222214869.post-17313599971413086602010-02-27T09:38:08.157-08:002010-02-27T09:38:08.157-08:00आप संस्मरण विधा को ही नए सिरे से माँज दे रहे हैं। ...आप संस्मरण विधा को ही नए सिरे से माँज दे रहे हैं। जैसा कि सुभाष ने अपने अध्यापक को याद किया है, वैसे ही बहुत से पाठकों को अपने अध्यापक ही नहीं, आसपास के अनेक लोग याद जरूर आयेंगे। यही किसी भी संस्मरण-लेखक की सफलता है कि वह समूचे पाठकवर्ग को अपने साथ जोड़ ले। बधाई।बलराम अग्रवालhttps://www.blogger.com/profile/04819113049257907444noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2880097249222214869.post-69972162419845904692010-02-27T09:29:50.734-08:002010-02-27T09:29:50.734-08:00भाई चंदेल जी,एक जीवन्त संस्मरण के लिए आप को बधाई.छ...भाई चंदेल जी,एक जीवन्त संस्मरण के लिए आप को बधाई.छिद्दा जैसे मास्टर तो उस वक्त में लगभग सभी की किस्मत के हिस्से में आये हुए थे.मुझे भी चौथी क्लास के चौवे जी और पांचवीं क्लास के पंडित गौरी शंकर याद हैं.विस्तार से फिर कभी.कस्तूरवा के रूप में आप ने अपनी स्मृति में जिस महिला को याद किया है ,सचमुच ममता भरे स्नेह को जीवित किया है.आप निरंतर ऐसे प्रसंग लाते रहिये प्रेरणा का काम करेंगे.धन्यवाद.सुरेश यादवhttps://www.blogger.com/profile/16080483473983405812noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2880097249222214869.post-59670622283990802552010-02-27T06:22:12.198-08:002010-02-27T06:22:12.198-08:00प्रिय रूप ,
"एक और कस्तूरबा" एक सार्थक ...प्रिय रूप ,<br />"एक और कस्तूरबा" एक सार्थक संस्मरण है. यह समाज को उसका खोया हुआ यह विश्वास लौटाता है कि मानवीयता अभी बहुतेरे ठौरों पर पाई जाती है और मानवीय होने के किये प्रचुर संपन्न होना कोई शर्त नहीं है. यह समाज के लिए एक सार्थक उपलब्धि है.<br /> <br />मैं तुम जैसे कुशल कथाकार को एक काम और सौंपना चाहता हूँ. कथा सृजो जो कस्तूरबा जैसे पात्रों के रचे जाने की अंतरप्रक्रिया सामने लाये... कि कस्तूरबा आखिर कस्तूरबा कैसे और क्यों है... निश्चित रूप से ऐसे वैचारिक तर्क ज़रूर हैं जिन्हें जान कर कोई भी खुद कस्तूरबा होना चुन सकता है. अभी तो तुम्हारा संस्मरण पाठकों को प्रेरित भर करता है कि वह कस्तूरबा को, उसके सामने पड़ने पर, पहचान कर उसका सम्मान कर सकें. <br />जो भी है, बधाई तो तुम्हें है ही.<br /><br />अशोक गुप्ताAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2880097249222214869.post-4805697426473306862010-02-27T03:23:42.977-08:002010-02-27T03:23:42.977-08:00क्या ऐसे लोग होते हैं ...निर्छद्म , ममत्व और प्रेम...क्या ऐसे लोग होते हैं ...निर्छद्म , ममत्व और प्रेम की प्रतिमूर्ति....किसी पौराणिक पात्र की भांति । लेकिन होते हैं ....vivek ranjan shrivastava jabalpurVivek Ranjan Shrivastavahttps://www.blogger.com/profile/06945725435403559585noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2880097249222214869.post-29261856783562852722010-02-27T03:21:34.388-08:002010-02-27T03:21:34.388-08:00" YAADON KEE LAKEEREN " KE ANTARGAT
AAPK..." YAADON KEE LAKEEREN " KE ANTARGAT<br />AAPKA EK AUR SANSMARAN PADHA HAI.<br />MUJHE SAARAA KAA SAARAA LEKH <br />SANSMARAN HEE LAGAA HAI.MASTER <br />CHHIDDA KAA CHARITRA BADAA HEE<br />SAJEEV LAGAA HAI.AAPKEE LEKHNI KO<br />DAAD DETAA HOON.KAHIN VYANGYA,<br />KAHIN HAASYA AUR KAHIN GAMBHHEERTA.<br />BAHUT KHOOB !MEREE BADHAAEE SWEEKAR<br />KIJIYE.PRAN SHARMAhttp://mahavir.wordpress.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2880097249222214869.post-1783263611418592592010-02-27T00:20:52.571-08:002010-02-27T00:20:52.571-08:00चन्देल यार, तुम्हारा यह संस्मरण भी मन को मोह लेने ...चन्देल यार, तुम्हारा यह संस्मरण भी मन को मोह लेने वाला है। कहीं कहीं आत्मकथा सा रस देता है क्योंकि यह तुमसे जुड़ा है तो तुम्हारे जीवन से जुड़ी बातों का आना स्वाभाविक है। यदि तुम इसका शीर्षक 'एक और कस्तूरबा' ना देते तो शुरूआत में मै( और शायद अन्य पाठक भी) इसे गणित के छिददा मास्टर से जुड़ा संस्मरण पढ़ते। पाँचवी कक्षा में मैंने भी इसी तरह के एक मास्टर से खूब पिटाई खाई है- उसका नाम खचेड़ू था, सब उसे खचेड़ू मास्टर कहते थे। उसके दायें हाथ की हथेली टेढ़ी थी और अंगुलियां भी पर वह इसी हथेली से बच्चों की पीठ धुन देता था। उसकी मार के डर से तो कई बालकों का निक्कर में पेशाब तक निकल जाता था। <br />खैर, एक अच्छे संस्मरण के लिए बधाई !सुभाष नीरवhttps://www.blogger.com/profile/06327767362864234960noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2880097249222214869.post-38156645357617286412010-02-26T23:13:56.618-08:002010-02-26T23:13:56.618-08:00आदरणीय रूप चन्द जी बहुत अच्छा संस्मरन है पहले वाले...आदरणीय रूप चन्द जी बहुत अच्छा संस्मरन है पहले वाले गुरू आज कहाँ वो केवल पढाते ही नही थी बल्कि बच्चों से दिल से प्यार करते थे आज सब कुछ बाज़ार्वाद की भेंट चढ गया है। धन्यवाद। "आपको सपरिवार होली की शुभकामनाएँनिर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.com